अपराध के खबरें

मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के समक्ष चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त

अनूप नारायण सिंह 
 
चंपई सोरेन झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री बन जरूर गए हैं, लेकिन वे जिन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, उनके समझ चुनौतियां भी कम नहीं है। चंपई सोरेन के समक्ष चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त हैं। यह पद उनके माथे पर कांटे के ताज के समान जान पड़ता है। वे अपने माथे पर सजे कांटे के ताज पर से कील कितनी बहादुरी के साथ कील निकाल पाते हैं ? यह बात भविष्य के गर्भ में छिपी हुई है। टाइगर के नाम से सुप्रसिद्ध चंपई सोरेन झारखंड अलग प्रांत संघर्ष के एक बहादुर सिपाही रहे हैं। झारखंड मूर्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन के एक आज्ञाकारी और विश्वासी सिपाही के रूप में भी अपनी पहचान बनाने में सफल रहे हैं। चंपई सोरेन जमीनी स्तर के एक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। इन पर अब तक कोई भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं। इनका साधारण जीवन यह बताता है कि ये राजनीति में रहते हुए भी राजनीति के दांव पर से अलग ही रहते हैं। कम बोलते हैं। सुनते ज्यादा हैं।‌ वे इन्हीं विशेष गुणों के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाए हैं।
हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद यूपीए की एकता तो दिख रही है। लेकिन यह एकता कितने दिनों तक बनी रहती है ? यह भी सवालों के घेरे में है। यह एकता जितनी स्पष्ट दिख रही है, किन्तु अंदर की राजनीति कुछ और ही बयां कर रही है। ऐसे झारखंड मुक्ति मोर्चा, यूपीए घटक दल की सबसे बड़ी पार्टी के है। इसलिए इस दल का ही मुख्यमंत्री बनना लाजमी भी था। चंपई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक है। वे, शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के विश्वासी भी हैं। ईडी ने जिस तरह के चार्ज हेमंत सोरेन के विरुद्ध लगाए हैं, बेहद संगीन है। ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद हेमंत सोरेन को सीधे होटवार जेल भेज दिया गया था। इस गिरफ्तारी के विरुद्ध हेमंत सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया । वहां बात नहीं बनी। फिर उन्होंने रांची हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया। वहां भी बात नहीं बनी।‌ अभी हेमंत सोरेन, ईडी के पांच दिनों के रिमांड पर हैं । जिस तरह के आरोप हेमंत सोरेन पर है। लगता नहीं है कि वे लोकसभा चुनाव से पूर्व छूट पाएंगे। हेमंत सोरेन के झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव तक भी जेल से छूटने की उम्मीद कम लग रही है । लोकसभा और विधानसभा का चुनाव चंपई सोरेन के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। इसकी ज्यादा प्रबल संभावना दिख रही है।
   ऐसे इस बात की आशंका पिछले दो महीने से बनी हुई थी कि हेमंत सोरेन जल्द ही ईडी की कार्रवाई को देखते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे देंगे । इस बात की राजनीतिक गलियारे में बराबर चर्चा भी हो रही थी कि हेमंत सोरेन के इस्तीफे बाद इस प्रांत के मुख्यमंत्री कौन होंगे ? मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पहले हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का नाम आया। जिस तरह बीते कुछ दिनों से कल्पना सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा की बैठकों में शामिल हो रही थी। इससे यह बात खुलकर सामने आ गई थी कि अगर हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हैं, तो कल्पना सोरेन ही मुख्यमंत्री बनेंगी ।
वहीं दूसरी ओर शिबू सोरेन परिवार के ही कई सदस्य मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने के लिए सामने आ गए थे ।‌ शिबू सोरेन के बड़े पुत्र स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की विधायक पत्नी सीता सोरेन ने भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावा ठोक दिया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि वह शिबू सोरेन की बड़ी बहू होने के नाते मुख्यमंत्री बनने का उन्हें पहला हक है। अगर शिबू सोरेन की तबीयत ठीक होती तो संभवत चंपई सोरेन की जगह वे झारखंड के 12 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते । उनके नाम पर कहीं भी यूपीए घटक दल में विरोध नहीं होता।‌ लेकिन उनकी तबीयत बराबर खराब रहने के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका।
 झारखंड की राजनीति में दूर-दूर तक चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा तक नहीं थी। लेकिन अचानक चंपई सोरेन का नाम मुख्यमंत्री के रूप में सामने आया । उन्हें हेमंत सोरेन के इस्तीफे के साथ ही तुरंत विधायक दल का नेता भी चुन लिया गया । यह बात किसी को हजम नहीं हो पा रही है। अब सवाल यह उठता है कि कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया? 
 इस बात की भी चर्चा राजनीतिक गलियारे में बड़ी तेजी के साथ हो रही है कि शिबू सोरेन भी नहीं चाहते थे कि कल्पना सोरेन अथवा सीता सोरेन झारखंड की मुख्यमंत्री बने। जबकि घर में ही इस पद के एक और प्रबल दावेदार है। खैर जो भी हो, चंपई सोरेन झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले चुके हैं। चंपई सोरेन को अपनी सरकार चलाने के लिए यूपीए घटक दल के विधायकों और मंत्रियों के बीच बेहतर तालमेल बनाकर रखना होगा। तभी उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी। अन्यथा उनकी परेशानियों बढ़ा देंगी ।
इस बात की भी चर्चा चल रही है कि आखिर झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक सरफराज अहमद ने गांडेय विधानसभा सीट क्यों इस्तीफा दिया? सरफराज अहमद झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक मजबूत कार्यकर्ता के साथ अपनी पार्टी में अच्छी पकड़ रखते हैं। वे प्रांत के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी माने जाते रहे हैं। सरफराज अहमद ने गांडेय विधानसभा सीट से इसलिए इस्तीफा दिया था कि कल्पना सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के 6 महीने बाद गांडेय विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सके। सरफराज अहमद की शहादत भी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री नहीं बना पाई। अब सवाल यह भी उठता है कि यूपीए घटक दल के नेता गण क्या कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे थे ? अगर इस बात में जरा भी सच्चाई है, तब यह झारखंड यूपीए घटक दल के लिए अच्छी खबर नहीं है।
चंपई सोरेन के समक्ष एक ओर प्रांत की जबाबदेही है। वहीं दूसरी ओर यूपीए घटक दल के नेताओं को एक सूत्र में बांधे रखने की है। चंपई सोरेन यूपीए घटक दल के नेताओं से थोड़ा अलग चिंतन वाले व्यक्ति भी है।‌ उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते के बाद पहला प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि जल, जंगल और जमीन के प्रति उनकी जो जवाबदेही है, उसे पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा। वे पढ़े लिखे कम जरूर हैं,लेकिन उनके पास संघर्ष का अनुभव ज्यादा है। वे झारखंड के बेलगाम आईएएस और आईपीएस लॉबी को किस तरह हैंडल करेंगे ? यह अभी देखना बाकी है । पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बराबर झारखंड के बेलगाम अधिकारियों खिलाफ सार्वजनिक मंचों पर कार्रवाई तक का देने की धमकी दे दिया करते थे। क्या मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ऐसा कर पाएंगे ? यह भी राजनीतिक गलियारे में चर्चा हो रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, चंपई सोरेन के माध्यम से जेल से ही सरकार चलाएंगे।
  चंपई सोरेन, शिबू सोरेन के नेतृत्व में राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। वे  सरायकेला विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक चुने गए। 1995 में चंपई सोरेन पहली बार ग्यारहवीं बिहार विधानसभा में सरायकेला से विधायक बने। चंपई सोरेन झारखंड सरकार में 2010 से 2013 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी, श्रम और आवास कैबिनेट मंत्री रहे। आगे वे 2013 से 2014 तक खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, परिवहन कैबिनेट मंत्री रहे। । वे 2019 में पांचवीं झारखंड विधानसभा में सरायकेला से विधायक और परिवहन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण कैबिनेट मंत्री रहे। चंपई सोरेन को सरकार चलाने का एक अच्छा अनुभव भी है। यह अनुभव चंपई सोरेन को सरकार चलाने का मार्ग प्रशस्त करेगा। आज भी सरायकेला में उनका पुश्तैनी मकान खपड़पोश का ही है। वे झारखंड के दूसरे कर्पूरी ठाकुर प्रतीत होते हैं। चंपई सोरेन किसी से कोई विशेष आकांक्षा नहीं रखते हैं। वे झारखंड के सच्चे अर्थों में टाईगर हैं। वे पार्टी के एक वफादार कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं, जब भी पार्टी को उनकी जरूरत पड़ती है, अथवा जब भी उन्हें कुछ जवाबदेही दी जाती है, उस पर चंपई सोरेन खरा उतरने का भरसक प्रयास करते हैं । वे ज्यादातर मामले में मीडिया से दूर ही रहना पसंद करते हैं। वे सरायकेला के लोकप्रिय नेता हैं।‌ उनकी सादगी और सहजता पर सरायकेला की जनता को गर्व है। आशा है कि चंपई सोरेन अपने इस नए दायित्व का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ करने में सफल होंगे। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री चंपई सोरेन इस चुनौती को एक अवसर में कैसे बदलते हैं ?

अनूप नारायण सिंह

إرسال تعليق

0 تعليقات
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

live