यह पूरी प्रकार से भारत की धर्मनिरपेक्ष साख के अनुरूप है.
"बता दें कि वर्ष 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम को पारित किया गया था. इसके बाद इस अधिनियम को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी, लेकिन सीएए के दिल्ली के शाहीन बाग समेत देश में कई जगह इसके विरुद्ध विरोध प्रदर्शन हुए. इन प्रदर्शनों के चलते यह कानून लागू नहीं हो पाया.यह कानून अब तक इसलिए भी लागू नहीं हो सका था क्योंकि इसके कार्यान्वयन के लिए नियमों को अब तक अधिसूचित किया जाना बाकी था, लेकिन अब रास्ता साफ हो गया है. संसदीय कार्य नियमावली के अनुकूल, किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की मंजूरी के 6 महीने के अंदर तैयार किए जाने चाहिए अन्यथा सरकार को लोकसभा और राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समितियों से अवधि में विस्तार करने की मांग करनी होगी.