इस संबंध में उन्होंने अखिलेश प्रसाद सिंह को पत्र लिखा है. असित नाथ तिवारी ने बयान जारी करते हुए बोला, "बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता पद से त्यागपत्र दे दिया है. इसी के साथ ही पार्टी की प्राथमिक सदस्यता भी त्याग दी है. त्यागपत्र का कारण पूर्णतः व्यक्तिगत है. पार्टी के किसी नेता या कार्यकर्ता से मेरी कोई शिकायत नहीं है. 2020 में विधानसभा चुनाव के वक्त में मैंने पार्टी की सदस्यता ली थी. उसी समय मुझे पार्टी का प्रवक्ता बनाया गया था. तब से लेकर अब तक का सफर बहुत अच्छा रहा.
कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं का पूरा सहयोग मिला.
इन सबका तहे दिल से आभार."बता दें कि असित नाथ तिवारी से पहले बीते रविवार (31 मार्च) को बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने भी पार्टी से इस्तीफा दिया था. ऐसे में बोला जा सकता है कि एक तरफ लोकसभा का चुनाव है तो वहीं दूसरी ओर बिहार में कांग्रेस नेताओं का पार्टी से मोहभंग हो रहा है.
असित नाथ तिवारी ने तो पार्टी में किसी नेता और कार्यकर्ता पर इल्जाम नहीं लगाया है लेकिन अनिल शर्मा अनदेखी से नाराज थे. उन्हें काफी वक्त से संगठन में कोई बड़ा पद नहीं मिला था. यहां तक कि उन्होने महागठबंधन में रहते हुए जातीय गणना के आंकड़ों पर प्रश्न उठाए थे.अनिल शर्मा ने त्यागपत्र देने के बाद बोला, "1998 में जब से आरजेडी का कांग्रेस से गठबंधन हुआ था मैं इस गठबंधन का विरोधी रहा हूं. आरजेडी के साथ कांग्रेस का गठबंधन आत्मघाती है. लालू के वजह से कांग्रेस बिहार में वोट कटवा पार्टी बनके रह गई है. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष रहते मैं पप्पू यादव का विरोध करता था. वह कांग्रेस में सम्मिलित हो गए हैं. उनका महिमामंडन नहीं कर सकता. मेरे पार्टी छोड़ने का यह भी एक वजह है." इसके साथ ही उन्होंने कई और इल्जाम भी लगाए थे.