मेरा अगला कदम हमारे साथियों की राय पर निर्भर करेगा.
उन्होंने पुरानी बातों को याद दिलाते हुए बोला कि "जब मैंने प्रधानमंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह यादव का सपोर्ट किया तो केवल मुझे मिनिस्ट्री से हटाया गया था. उसके बाद भी मैंने दो-दो बार समझौता किया. 2004 में डॉक्टर जगन्नाथ मिश्रा के विरुद्ध चुनाव लड़ने की जब बात आई तो उस समय भी मैं सामने आया और जीत हासिल किया. इसके बाद भी एक मौका आया जब लालू प्रसाद ने जेल से टेलीफोन किया और तेजस्वी को मजबूत करने की बात बोली. उसके बाद भी मैं तेजस्वी जी को आशीर्वाद मैंने दिया. मैंने हमेशा समझौता किया है, लेकिन सिद्धांत से समर्पण मैं नहीं कर सकता." उन्होंने यह भी बोला कि फिलहाल में पार्टी में बना हुआ हूं. आगे की रणनीति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बोला कि राजनीति संभावनाओं का खेल है. पार्टी में धोखा खा लेना मैं बेहतर समझता हूं लेकिन किसी को धोखा नहीं दे सकता. इसलिए जो चीज अभी चल रही है, वह बहुत ही दुखद है और विचारणीय है. उन्होंने इस मौके पर एक शेर, जिंदगी में तुमसे समझौता हर मोड़ पर करूंगा लेकिन इतना तो नहीं, को भी पढ़ा और बोला कि इसका भावार्थ आप लोग समझे. देवेंद्र यादव ने बोला कि एक परिवार ऐसा है जो यदुवंशियों को धान और चावल समझता है. जिस कोठी में रख देंगे वहां चले जाएंगे. हम लोग समाजवादी विचारधारा से निरंतर जुड़े हुए लोग हैं. उसूल पर जब आंच आए तो बोलना जरूरी है. देवेंद्र प्रसाद यादव ने बोला कि क्या लोकतंत्र में सच बोलना गुनाह है. मैं विचारधारा पर बोल रहा हूं. चालाकी से या धोखा से समाज का, राष्ट्र का, देश का लाभ नहीं हो सकता है. जब भी होगा वह चरित्र और विश्वास नहीं होगा. अभी मैं पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हूं. बिना नाम लिए देवेंद्र यादव ने बोला कि बाहर के प्रत्याशी को आयात करके एक ही दिन में सिंबल मिलता है. केवल यही नहीं जो बीजेपी में हैं, उनको भी आरजेडी में जगह मिल जाती है. बाल्मीकि नगर से लेकर औरंगाबाद तक यह दिख रहा है. आरजेडी में आरएसएस और बीजेपी के लोगों को जगह मिल रही है. यह पार्टी कहां जा रही है ? किस दिशा में जा रही है? यह विचारणीय विषय है. क्योंकि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की चादर पहने हुए हैं और कार्य तो दूसरा हो रहा है. हमारे जैसे लोगों को तकलीफ हो रही है.