कई बार ऐसे मैसेज पर यक़ीन नहीं होता। हमारे युवा इतने मन से सांप्रदायिक बनाए गए, राष्ट्रवाद के नाम पर नफ़रती बनाए गए लेकिन रोज़गार की बारी आई तो बेकार हो गए ? पाँच साल का इंतज़ार ? कम से कम जिनके वोट पर राज किया उन्हें तो न सताते।
युवाओं, बारात मत निकालो। प्रधानमंत्री से पूछो कि क्या मुसलमानों के चलते पाँच साल से भर्ती नहीं हुई? जब प्रधानमंत्री हर बात में मुसलमान का नाम लें तो तुम भी मुसलमान का नाम लेकर पूछा करो।
बाक़ी ये जो हो रहा है वह किसी भी प्रदेश और सरकार में युवाओं के साथ नहीं होना चाहिए।