पंकज झा शास्त्री
अक्षय तृतीया को कृतयुगादि तृतीया भी कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया पर कई कथा वर्णित है। धार्मिक नजरिए से अक्षय तृतीया का विशेष महत्व होता है इसलिए इसे युगादि तिथि के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन परशुराम का जन्म हुआ था। इस तिथि पर भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को अक्षय पात्र दिया था। अक्षय तृतीया के दिन ही मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। मान्यता है कि इस दिन स्नान,दान,जप,होम,स्वाध्याय, तर्पण आदि जो भी कर्म किए जाते हैं,वे सब अक्षय हो जाते हैं। अक्षय तृतीया तिथि पर आभूषण,जमीन से सम्बन्धित आदि खरीदने का विशेष महत्व होता है।
मिथिला क्षेत्रीय पंचांग के मुताबिक वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 10 मई को सुबह 05 बजकर 40 मिनट पर होगी, जिसका समापन 11 मई को प्रातः 04 बजकर 20 मिनट पर होगा। उदया तिथि के आधार पर अक्षय तृतीया 10 मई को मनाई जाएगी। स्टेशन चौक स्थित हनुमान प्रेम मंदिर के पुजारी पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि इस दिन सूर्य और चंद्रमा अपनी उच्च राशि मे होंगे, ऐसे में अक्षय तृतीया के दिन किया जाने वाले कई शुभ कार्य सफल सिद्ध हो सकता है। विवाह योग्य कन्याओं को भी उत्तम वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करना चाहिए। जिनको संतान नहीं हो रही हो वे स्त्रियां भी इस व्रत करके संतान सुख प्राप्त करने की प्रवालताओं को बढ़ा सकती है। अक्षय तृतीया का स्वयं सिद्ध मुहूर्त के रूप में भी बड़ा महत्व है।