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आज है वट सावित्री व्रत, जानें इसकी पूजा विधि और महत्व

संवाद 

अखंड सौभाग्य की कामना को लेकर सुहागिन महिलाएं इसबार 06 जून 2024,गुरूवार को ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या से युक्त रोहिणी नक्षत्र व धृति योग में वट सावित्री का व्रत करेंगी। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पतिव्रत धर्म का स्मरण करती हैं।

यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यर्धक, पापहारक, दुख प्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है। इसमें ब्रह्मा, शिव, विष्णु एवं स्यवं सावित्री भी विराजमान रहती है। स्टेशन चौक स्थित हनुमान प्रेम मंदिर के पुजारी पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया ने बताया कि ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वट सावित्री का व्रत पुण्यफल देने वाला संयोग बना है।
इस दिन रोहिणी नक्षत्र एवं धृति योग भी विद्यमान रहेगा। इस बार वट सावित्री व्रत पर ग्रहों की स्थिति भी शुभकारी है। 

सनातन धर्म में बरगद के पेड़ की पूजा करने की परंपरा सदियों पुरानी है। सनातन धर्म में इस वृक्ष को अक्षय वट भी कहा जाता है। यह पेड़ जितना धार्मिक महत्व रखता है इसका उतना ही महत्वपूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। वहीं वैज्ञानिक रूप से बरगद के पेड़ की जड़, तना, फल तीनों में ही औषधीय गुण पाए जाते हैं।

बरगद के पेड़ का सिर्फ धार्मिक ही नहीं है बल्कि आयुर्वेद में बहुत महत्व बताया गया है। इससे कई प्रकार की औषधियां प्राप्त की जा सकती हैं। अगर कोई घाव या खुली चोट है तो बरगद के पेड़ के दूध में हल्दी मिलाकर चोट वाली जगह पर बांधने से घाव जल्दी ही भर जाता है। इसके अलावा बरगद के पेड़ के पत्तों से निकलने वाले दूध को चोट, मोच या सूजन पर दिन में दो से तीन बार लगाकर मालिश करने से आराम मिलता है।

पंडित पंकज झा शास्त्री के अनुसार वट सावित्री पूजा के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन करने का विधान है। यह व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड माना जाता है।
 यह वट सावित्री पूजा एकनिष्ठ पतिपरायणा स्त्रियां अपने पति को सभी दुख और कष्टों से दूर रखने में समर्थ होती है। जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से छुड़ा लिया था। इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति भी वापस दिला दी। 

अमावस्या तिथि आरम्भ 05 जून को संध्या 07:06 के उपरांत
अमावस्या तिथि समापन 06 जून को दि 05:43 तक।
वटवृक्ष पूजन मुहूर्त 06 जून को प्रातः 05:14 से दिन के 03:23 तक अतिउत्तम होगा।

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