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आई ना हमारा बिहार में!!

संवाद 

लिटी सब्जी जलेबी और उसके बाद चाय शाम के समय इससे बढ़िया नाश्ता नहीं हो सकता। जिन लोगों को लगता है कि बिहार खानपान पकवान के मामले में पिछड़ा हुआ है उन लोगों को बिहार जाकर बिहार के विभिन्न इलाकों में जाकर वहां के क्षेत्रीय विविधता वाले खान-पान पकवान के विशिष्ट चीजों को देखना चाहिए वैसे हम भी पूरे बिहार में महज दो से चार फ़ीसदी ही व्यंजनों तक पहुंच पाए हैं। मूलत हम भोजपुरिया इलाके से हैं इस कारण से अपने इलाके के विविध व्यंजनों पर तो बचपन से नजर है पर बिहार में भोजपुरी के अलावा मैथिली मगही अंगिका बज्जिका का का अपना अलग-अलग क्षेत्र है भाषा के साथ वेशभूषा और भोजन भी बदल जाता है। कुछ चीज कॉमन रहती है जैसे दही चुरा खिचड़ी लिट्टी चोखा जलेबी पूरी सब्जी समोसा चाट पकोड़े भूंजा। खानपान पकवान के मामले में बिहार का मिथिलांचल और कोसी का इलाका ज्यादा समृद्ध है और यह समृद्धि आज से नहीं है प्रारंभिक काल से है वहां के लोग खाने में काफी शौकीनरहे हैं। मिथिलांचल के व्यंजनों पर एक पूरी सीरीज चलाई जा सकती है और हमारा प्रयास है कि हम इस इलाके के हर उसे विविध व्यंजन के बारे में आपको पता है जिसकी जानकारी हमें एकत्रित कर रहे हैं फिलहाल पूरा ध्यान सामने पड़े लिट्टी जलेबी हरी मिर्च और उसके बाद आई चाय पर है। बिहार में इन दोनों कुल्हड वाली चाय का बड़ा क्रेज है आप किसी भी इलाके में चले जाइए मिट्टी वाले कुल्हड में ही चाय दिया जाता है क्यों दिया जाता है इसका जवाब किसी के पास नहीं है। बिहार के कुछ इलाकों में जब चाय तैयार हो जाती है तो उसे एक जलते हुए बड़े से मिट्टी के पात्र में डाला जाता है जिससे और ज्यादा चाय खोलने लगता है और उसमें सोनधापन आ जाता है। हालांकि हर एक हाईवे चौक चौराहे पर चाय बेचने वाले इन सब चीजों से अभी भी अनजान है पर शुद्धता के ख्याल से ग्राहक कुल्हड़ में ही चाय पीना चाहते हैं चाय की कीमत होती है ₹5 और ₹5 कुल्हड़ का देना होता है यानी एक साधारण भी चाय ₹10 की हो चुकी है वैसे बिहार में ₹15 से काम की चाय आपको कहीं नहीं मिलने वाली है।

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