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नालंदा विश्वविद्यालय क्यों रहा है विशेष? अब्दुल कलाम से लेकर पीएम मोदी तक हैं मुरीद, पढ़ें सबकुछ


संवाद 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन करने आए हैं. विदेश मंत्री एस. जयशंकर और 17 देशों के राजदूत इस प्रोग्राम में सम्मिलित हो रहे हैं. विश्वविद्यालय का नया परिसर नालंदा के प्राचीन खंडहर स्थल के करीब है. प्रधानमंत्री के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर भी नालंदा आए हुए हैं.प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के तर्ज पर नालंदा के राजगीर में बना अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय अब नई उंचाईयों को छूने को तैयार है. ग्लोबल विश्वविद्यालय के रूप में आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय उभरने को तैयार है. नालंदा विश्वविद्यालय का अब खुद का भवन बनकर तैयार हो गया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विशेष पहल के बाद राजगीर में 455 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर विश्वविद्यालय प्रशासन को सौंप गया. नालंदा विश्वविद्यालय में 1,749 करोड़ रुपये की लागत से 24 बड़ी इमारतें बनाई गई हैं.नालंदा विश्वविद्यालय की परिकल्पना अब पूर्ण रूप से हकीकत में परिवर्तन जा रही है. 455 एकड़ में इस विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया है जिसमें सैकड़ो बिल्डिंग, दर्जनों तालाब, मेडिटेशन हॉल, कॉन्फ्रेंस हॉल, स्टडी रूम, आवासीय परिसर आदि का निर्माण किया गया है. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने में कई मोड़ आए और ज्ञान की बिखरी कड़ियों को जोड़ते हुए अंतर्राष्ट्रीय महत्व का संस्थान खड़ा हो सका.28 मार्च 2006 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्निर्माण करने की राय दी थी. यह विचार उन्होंने बिहार विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए रखा था. 

भारत सरकार ने साल 2007 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त अमर्त्य सेन के नेतृत्व में नालंदा मेंटर ग्रुप का गठन किया. 

इस ग्रुप में चीन, सिंगापुर, जापान और थाईलैंड के प्रतिनिधियों को भी सम्मिलित किया गया ताकि विश्वविद्यालय को स्थापित करने की दिशा में अंर्तराष्ट्रीय साझेदारी विकसित की जा सके. इसी अंतर्राष्ट्रीय ग्रुप को विश्वविद्यालय के गवर्निंग बॉडी में तब्दील कर दिया गया.नालंदा विधेयक 2010 को मंजूरी के लिए 21 अगस्त 2010 को राज्यसभा में पेश किया गया और वह पास हो गया. यह विधेयक इसी साल 26 अगस्त को लोकसभा से भी स्वीकृत हो गया. संसद के दोनों सदनों में विधयेक पास होने के बाद यह राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए गया. 21 सितंबर 2010 को राष्ट्रपति ने इस पर अपनी सहमति दे दी. 25 नंबर 2010 को विधयेक लागू होने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गया. साल 2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इसका आधारशिला रखा था. जापान और सिंगापुर ने नालंदा विश्वविद्यालय की अधिसंरचना के विस्तार के लिए 100 अमेरिकी डॉलर की सहायता दी. फरवरी 2011 में गोपाल सभरवाल को विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति नियुक्त किया गया. विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए बिहार सरकार ने स्थानीय लोगों से 455 एकड़ जमीन विश्वविद्यालय के लिए अधिग्रहित किया. 11 संकाय सदस्यों और 15 छात्रों के साथ विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र की शुरुआत 1 सितंबर 2014 से शुरू हुआ था. उस समय विश्वविद्यालय का अपना बिल्डिंग नहीं होने के वजह से शहर के एक सरकारी होटल और एक सरकारी भवन में कक्षाएं शुरू की गई थी. पर्यावरण अध्ययन विषय से विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हुई थी. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित कर 821 वर्ष बाद पठन-पाठनशुरू किया गया. नालंदा विश्वविद्यालय का शुभारंभ पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने किया था.2019 में विश्वविद्यालय अपनी परिसर में प्रवेश कर गया था और फिर विश्वविद्यालय का तमाम शैक्षणिक गतिविधियां नए भवन और नए कैंपस में विधिवत रूप से शुरू हो गया. नालंदा विश्वविद्यालय वर्तमान समय में मास्टर पाठ्यक्रम और डॉक्टर आफ फिलॉसफी पाठ्यक्रम प्रदान करता है जिसमें ऐतिहासिक अध्ययन स्कूल, पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन स्कूल, बौद्ध अध्ययन दर्शनशास्त्र और तुलनात्मक धर्म स्कूल, भाषा और साहित्य, मानविकी स्कूल, स्कूल आफ मैनेजमेंट स्टडीज, सूचना विज्ञान और प्रौद्योगिकी स्कूल सम्मिलित है.बता दें कि नालंदा कभी ज्ञान विज्ञान का अद्वितीय केंद्र था. साथ ही मानव सभ्यता संस्कृति धर्म और दर्शन के इतिहास में नालंदा का योगदान अविस्मरणीय हैं. पांचवी से बारहवीं शताब्दी तक विश्वविद्यालय की गरिमा और महत्ता पराकाष्ठा पर थी. प्राचीन काल में नालंदा अपने ज्ञान, दर्शन, साहित्य, चिंतन और विश्व बंधुत्व के सार्वभौमिक भाव के लिए विश्वविख्यात था. यहां एक विशाल नालंदा विश्वविद्यालय था जिसमें 2000 शिक्षकों के साथ 10000 छात्रों के अध्ययन और अध्यापन की सुविधा थी. यहां देश-विदेश से लोग विद्या अध्ययन करने आते थे. इस विश्वविद्यालय में धर्म, दर्शन, व्याकरण, तर्कशास्त्र, औषधी, शास्त्र, वेद विषयों की पढ़ाई की जाती थी. तक्षशिला विक्रमशिला इसके समकालीन शिक्षा केंद्र थे.प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक को जाता है. इसी क्रम में 12वीं सदी के अंतिम दशक में बख्तियार खिलजी ने विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर दिया. वर्तमान में नालंदा विश्वविद्यालय की विशाल खंडहर इसके प्राचीन गौरव गरिमा का साक्ष्य प्रमाणित कर रहा है. नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष जिनमें एक बड़ी संख्या बौद्ध चौत्यों और पूजन गृहों की है. साथ ही पर्यटन की दृष्टि से खास महत्व रखता है. संपूर्ण क्षेत्र करीब 14 हेक्टेयर भूमि में फैला हुआ है.

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