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अभी तो इरादों का इम्तिहान बाकी है... NDA की जीत के बावजूद बीजेपी के सामने चुनौतियों का पहाड़

संवाद 

 चुनाव के रुझान और नतीजों को देखते हुए यही लग रहा है कि बीजेपी सहयोगी दलों के साथ अगर सरकार बना भी लेती है तो उसके सामने चुनौतियों का पहाड़ होगा.
 अभी तो असली मंजिल पाना बाकी है, अभी तो इरादों का इम्तिहान बाकी है… बीजेपी के साथ भी कुछ ऐसी ही कहानी नजर आ रही है. लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आ रहे हैं, अब तक के रुझानों में विपक्षी दलों का INDIA गठबंधन एनडीए को कड़ी टक्कर देता दिख रहा है. आंकड़े इतनी तेजी से बदल रहे हैं कि अब तक ये भी कहना ठीक नहीं है कि एनडीए ही एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है. विपक्षी दलों ने उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में खेल कर दिया है. यानी बीजेपी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है और वो खुद के दम पर बहुमत से काफी दूर है. ऐसे में अगर एनडीए बहुमत के आंकड़े को पार कर भी लेता है तो बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी के सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगीं. 

बीजेपी को कितना बड़ा नुकसान?
सबसे पहले बीजेपी के नुकसान की बात कर लेते हैं. अब तक के रुझानों में बीजेपी 250 का आंकड़ा भी नहीं छू पा रही है. अगर यही रुझान नतीजों में बदलते हैं तो इस बार बीजेपी को करीब 60 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है. सबसे बड़ी बात ये है कि अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बावजूद उत्तर प्रदेश में बीजेपी और एनडीए को बड़ा डेंट लगा है. यूपी की 80 सीटों में से बीजेपी करीब 36 से 40 तक सिमटती हुई दिख रही है, वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को 40 से ज्यादा सीटें मिल सकती हैं.

गठबंधन को बचाना पहली चुनौती
जो नतीजे और रुझान सामने आ रहे हैं, उनसे साफ है कि बीजेपी को अब सरकार बनाने के लिए अपने सहयोगी दलों का हाथ थामकर चलना होगा. लेकिन राजनीति का इतिहास बताता है कि गठबंधन के साथी हाथ झटकने में बिल्कुल भी देर नहीं करते हैं, हवा अगर इंडिया गठबंधन की तरफ बहने लगी तो बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने कुनबे को बचाने की होगी. ये ठीक वैसा ही जैसे कुछ साल पहले कांग्रेस के साथ हुआ था. हालांकि बीजेपी का हाल तब की कांग्रेस जितना बुरा नहीं है. 

नीतीश बन सकते हैं किंग मेकर
बीजेपी के बड़े सहयोगी दलों की बात करें तो इसमें बिहार के सीएम नीतीश कुमार की जेडीयू भी शामिल है, जिसे राज्य की 40 सीटों में से 15 सीटों पर बढ़त मिली है, वहीं बीजेपी यहां 12 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है. जबकि बीजेपी ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा है और नीतीश की जेडीयू ने 16 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. अब नीतीश कुमार पर सभी की नजरें टिकी हैं, अगर वो एक बार फिर पाला बदलते हैं तो किंग मेकर साबित हो सकते हैं.

नीतीश कुमार के अलावा तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने भी आंध्र प्रदेश में बड़ा उलटफेर किया है, पार्टी कुल 16 सीटें पर आगे चल रही है. ऐसे में विपक्षी दलों ने चंद्रबाबू नायडू से संपर्क साधना शुरू कर दिया है. नीतीश कुमार की जेडीयू के बाद विपक्ष की नजरें टीडीपी पर ही टिकी होंगीं. इसी तरह एनडीए के बाकी दलों को भी तोड़ने की कोशिश होगी.

बार्गेनिंग पावर होगी कम
साल 2014 के नतीजों की बात करें तो बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 543 में से कुल 282 सीटें हासिल की थीं. यानी खुद के दम पर बहुमत के पार पहुंच गई थी. इस दौरान बीजेपी के पास पूरी बार्गेनिंग पावर थी, यानी गठबंधन के साथियों का कोई भी दबाव नहीं था. इसके बाद जब 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो बीजेपी और प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई, पार्टी ने 303 सीटों पर जीत हासिल की. इस बार पार्टी का कॉन्फिडेंट सातवें आसमान पर था और बीजेपी ने बिना हिचके वो हर काम किया जो उसके एजेंडे में था. 

अब 2024 में भी बीजेपी को यही उम्मीद थी कि वो बहुमत के आंकड़े को पार करेगी और इस बार तो 400 पार का नारा भी दिया गया. हालांकि रुझान और नतीजे कुछ और ही कहानी बता रहे हैं. इन नतीजों का बीजेपी की बार्गेनिंग पावर पर काफी असर पड़ेगा. अगर एनडीए की सरकार बनती है तो बीजेपी को कई बड़े मंत्रीपदों पर समझौता करना पड़ सकता है. क्योंकि अगर किसी भी सहयोगी दल ने साथ छोड़ा तो सत्ता का सिंहासन हिलने लगेगा. 
  
बीजेपी के एजेंडे पर ब्रेक
तीसरी सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के लिए उसके एजेंडे पर काम करना होगा. 2014 के बाद से बीजेपी ने अपने तमाम एजेंडों पर काम किया और उन्हें पूरा भी किया. अब पार्टी के एजेंडे में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC), एक राष्ट्र एक चुनाव और जनसंख्या नियंत्रण कानून जैसे बड़े मुद्दे थे. अब जैसा कि रुझान दिखा रहे हैं कि बीजेपी को बहुमत हासिल नहीं हो रहा है, ऐसे में बीजेपी के ये सभी मुद्दे ठंडे बस्ते में जा सकते हैं. किसी भी एक मुद्दे पर बीजेपी को हर सहयोगी दल को साथ लेकर चलना होगा.

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