राज्य की याचिका अधिवक्ता मनीष कुमार के जरिए उच्चतम न्यायालय में दायर की गई है.
पटना हाई कोर्ट की एक पीठ ने बिहार में सरकारी नौकरियों में रिक्तियों में आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को मंजूर कर लिया था.उच्च न्यायालय ने 87 पन्नों के विस्तृत निर्देश में स्पष्ट किया कि उसे ‘‘कोई भी ऐसी परिस्थिति नजर नहीं आती जो राज्य को इंदिरा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय की तरफ से निर्धारित आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करने में सक्षम बनाती हो.’’ उच्च न्यायालय ने बोला, ‘‘राज्य ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न श्रेणियों के संख्यात्मक प्रतिनिधित्व के बजाय उनकी जनसंख्या के अनुपात के आधार पर (आरक्षण देने का) कदम उठाया.’’ये संशोधन जातिगत सर्वेक्षण के बाद किए गए थे, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी को राज्य की कुल जनसंख्या का 63 प्रतिशत बताया गया था, जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत से अधिक बताई गई थी. बिहार सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण की कवायद तब प्रारंभ की, जब केंद्र ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अलावा अन्य जातियों की जनगणना करने में असमर्थता जताई.