सियासत में यह एक छोटा समय है.
इन चार वर्षों में मेरे जीवन में और आपके जीवन में भी कई परिवर्तन आए होंगे लेकिन दो चीजें जो नहीं बदली वो हैं बिहार की आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था और इस व्यवस्था को बदलने का मेरा संकल्प."आगे लिखती हैं, "वर्ष 2019 में मैंने एक ऐसा फैसला लिया था जिसने मेरा जीवन हमेशा के लिए बदल दिया. बिहार की कभी नहीं बदलने वाली सड़ी व्यवस्था को हमेशा के लिए बदलने के लिए अपना सब कुछ छोड़ना. इस देश की सियासत के गटर में घुसने के लिए व्यक्तिगत जीवन की तिलांजलि, औरों की तरह बिहार और राजनीति मेरे लिए कोई बैक-अप प्लान बी न था और न है. बनना कुछ और हो, नहीं बन पाए तो चलो बाप की राजनीति वाला धंधा कर लेते हैं या कहीं से टिकट खरीद के फिट हो जाते हैं. या किसी पार्टी में पट नहीं रहा ‘गोटी सेट नहीं हो पा रहा’ तो चलो बिहार के लोगों को गांधी और अंबेडकर का पोस्टर लगा कर झांसा देते हैं, बिहार के लोग तो “झांसे में आते ही हैं”. मेरे लिए सियासत झांसा देने वाला जाल नहीं, आदर्शों के लिए है आइडियोलॉजी." पुष्पम प्रिया ने पत्र के माध्यम से बोला, "मुझे मुख्यमंत्री का पद भगवान का पद नहीं लगता, मात्र एक पद है, हां एक शक्तिशाली पद है जिस पर इंस्टीट्यूशन बनाने के लिए बैठना जरूरी है. और उस पद पर उसे ही बैठना चाहिए जिसे इंस्टीट्यूशन बदलने आता हो, उसकी समझ हो, पढ़ाई हो. जैसे इलाज उसी को करना चाहिए जो डॉक्टर हो. एक्टर एक्टिंग कर सकता है, क्रिकेटर क्रिकेट खेल सकता है और फ्रॉड ड्रामा कर सकता है पर व्यवस्था वही बदल सकता है जिसके पास व्यवस्था बनाने का स्किल-सेट हो. संविधान वही बना सकता है जो संविधान बनाने की समझ रखता हो, सबसे बड़ी बात "नीति और नीयत" हो."इसी तरह पुष्पम प्रिया चौधरी ने पत्र में आगे और भी बहुत कुछ लिखा है. बता दें कि प्लूरल्स पार्टी की संस्थापक हैं. 2020 के चुनाव में अपनी किस्मत को आजमाया लेकिन हार का सामना करना पड़ा. 2020 में प्लूरल्स पार्टी ने बिहार की 243 में से करीब 47 सीटों पर चुनाव लड़ा था. एक भी सीट पार्टी नहीं जीती थी.