ठीक है उनको मुख्यमंत्री बनाया गया था,
लेकिन उनसे राय ली जाती, त्याग पत्र देने को बोला जाता. ऐसा ना करके उनके सारे प्रोग्राम को रद्द कर दिया गया और इधर नेता चुन लिया गया, तो उनको अपमानित किया गया. अपमानित होने के बाद चंपाई सोरेन ने खुद बोला था कि मेरे सामने तीन विकल्प हैं. उसमें से एक विकल्प ये भी है कि हम दूसरे साथी को चुनें. ये तो उनकी बात है. इसके बारे में हम क्या कहें, लेकिन ये बात अवश्य कहते हैं कि उनके साथ अपमानजनक बातें हुईं. उसके लिए वह फैसला लेने के लिए स्वतंत्र थे. उन्होंने फैसला लिया. अपने ढंग से उन्होंने ठीक ही किया. उसके बारे में हमको कुछ नहीं कहना है."
उधर बीते सोमवार को मांझी ने ट्वीट कर लिखा था, "कश्मीर में चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस पार्टी पाकिस्तान और हिजबुल के साथ भी गठबंधन कर सकती है." इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बोला, "हमने ट्वीट नहीं किया है. यह एनडीए का सामान्य रुख है. अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और अन्य जो पाकिस्तान समर्थक बयान देते हैं, अनुच्छेद 370 का समर्थन करते हैं, वो वहां एससी एसटी के आरक्षण का विरोध करते हैं और उसी के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो गया है. यह स्पष्ट है कि कांग्रेस का गठबंधन इसका समर्थन करेगा और उनका एजेंडा अनुच्छेद 370 को वापस लाना है. इसीलिए मैंने ट्वीट किया है.''