क्योंकि लोगों को फिलहाल इस सर्वेक्षण और प्रक्रिया के कारण काफी मुश्किल हो रही है.
सरकार में सम्मिलित प्रमुख घटक दल जेडीयू और बीजेपी के नेताओं का मानना है कि अगले वर्ष (2025) होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जमीन सर्वे के चलते लाभ से ज्यादा नुकसान हो सकता है. यह सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है. हालांकि अंतिम फैसला सीएम नीतीश कुमार को ही लेना है.दरअसल राज्य सरकार ने जमीन से जुड़े विशेष सर्वेक्षण को इसलिए 20 अगस्त से शुरू किया था कि भूमि विवाद और हिंसा को प्रदेश में समाप्त किया जा सके. सूत्रों के अनुकूल बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता या मंत्री हों या फिर जेडीयू के नेता-मंत्री हों, सभी ने नीतीश कुमार को इस प्रोग्राम के शुरू होने के बाद जनता को जो समस्या हो रही है उससे अवगत कराया है. एक तरह का आक्रोश भी है लोगों में जिसके बारे में बताया गया है. अब निर्णय नीतीश कुमार को करना है. हालांकि अभी तक इस पर आधिकारिक रूप से कोई बयान सामने नहीं आया है.आपको बता दें कि ये जो सर्वे चल रहा है इसे लोग सही तो मान रहे हैं लेकिन इसको लेकर धरातल पर कई चीजों में कमियां पाई जा रही हैं. बिहार एक ऐसा राज्य है जहां पर जमीन के रिकॉर्ड अपडेट नहीं होने के चलते कई बार कोई भी प्रोजेक्ट हो वह हमेशा लेट हो जाता है. ऐसे में जमीन सर्वे के तहत कागजात को दुरुस्त किया जाना जरूरी था.गौरतलब हो कि आंध्र प्रदेश में जो जगनमोहन रेड्डी की सरकार थी तो उसने भी चुनावी वर्ष में जमीन के रिकॉर्ड को डिजिटाइज करने की मुहिम शुरू की थी. इसका काफी ज्यादा राजनीतिक खामियाजा सत्ता से बाहर जाकर उठाना पड़ा. ऐसे में बिहार की एनडीए सरकार उस गलती को दोहराना नहीं चाहती है. ऐसे में अब बिहार में निर्णय कब होगा और कैसे होगा यह सब कुछ नीतीश कुमार के ऊपर निर्भर करता है.