गरीब शोषित वंचित हाशिये पर खड़े लोग जानना चाहते हैं कि उनकी आबादी कितनी है?
राष्ट्रीय स्तर पर जातीय गणना हो और इन कैटेगरी के लोगों के लिए विकास कार्यक्रम बनाया जाए. उनको उनका हक दिया जाए.सीएम नीतीश ने महागठबंधन सरकार में जातीय गणना कराई. आरक्षण का दायरा बढ़ा. 94 लाख ऐसे परिवार चिन्हि्त हुए जिनके पास नौकरी नहीं है. तीन वर्ष में इन परिवारों को दो-दो लाख रुपये बिहार सरकार देगी. रोजगार शुरू करने के लिए. देश व राज्यों में जातीय गणना कराकर सरकारों को इस तरह का कार्य करना चाहिए. आंकड़े भी सिर्फ जारी होने से कार्य नहीं चलेगा वास्तविक संख्या के आधार पर विकास योजनाएं बनानी होगी. वहीं चिराग के बयान पर आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने बोला कि चिराग कुतर्क दे रहे हैं. जब जातीय गणना के आंकड़े जारी होंगे तब ही विकास कार्यक्रम बनेगा. बिना आंकड़ा जारी किये कार्य कैसे होगा? आंकड़ों से पता चलेगा कि कौन अंतिम पंक्ति में हैं? तभी पता चलेगा कि कौन मजदूरी कर रहे हैं? कौन रिक्शा चला रहा है? देश में जातीय गणना हो और सरकार आंकड़े भी जारी करे. चिराग केंद्र सरकार में हैं. दबाव बनाकर जातीय गणना कराएं. महागठबंधन सरकार में तेजस्वी ने तो बिहार में जातीय गणना करवाई थी. बता दें जातीय जनगणना पर एलजेपी (रामविलास) प्रमुख एवं सांसद चिराग ने एबीपी न्यूज को दिए एक बयान में बोला था कि मैं भी जाति जनगणना का पक्षधर हूं. मैंने हमेशा जाति जनगणना का समर्थन किया है. सब की सहमत से ही बिहार में जाति सर्वे कराया गया था. मैं पूरी तरह से इसके पक्ष में हूं. सरकारों के पास किस जाति की कितनी आबादी है यह आंकड़ा होना चाहिए, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए. हालांकि आंकड़े सार्वजनिक नहीं करने कि बात जो चिराग ने बोला, इससे उनकी सहयोगी दल जेडीयू भी सहमत नहीं है.