संवाद
आश्विन मास की शरद पूर्णिमा को हिन्दू पंचांग में कोजागरा पर्व के रुप में उल्लिखित किया जाता है। इसे कौमुदी व्रत और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था।
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। उससे धरती का सौन्दर्य खिल उठता है, जिसे देखने देवगण भी धरती पर चले आते हैं।
रातभर चांदनी में रखा जाता है खीर
पुराणों के अनुसार, अश्विनी कुमारों ने च्यवन ऋषि को आरोग्य और औषधि की जानकारी कोजागरा पूर्णिमा के दिन ही दिया था। हजारों साल बाद भी वही ज्ञान आज परंपरा के रूप में संचित है। अश्विनी कुमार देव-चिकित्सक और आरोग्य के दाता हैं, जबकि शरद पूर्णिमा का पूर्ण चंद्र अमृत का स्रोत है। इसलिए मान्यता है कि कोजागरा पूर्णिमा की स्निग्ध-धवल चांदनी से अमृत बरसती है, जिसके सेवन से स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। वैवाहिक जीवन में माधुर्य और प्रेम भर जाता है। कहते हैं कि यही कारण है कि इस पूर्णिमा की रात में घरों की छत पर खीर रखा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से चंद्रमा का अमृत-अंश खीर में समा जाता हैं, जिसके सेवन करने से आरोग्य लाभ होता है।
इसलिए नाम पड़ा कोजागरा
देवी महात्म्य और अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस रात की सुन्दरता का महत्व इसलिए भी है कि देवी लक्ष्मी जो सम्पूर्ण जगत की अधिष्ठात्री हैं, इस रात्रि को कमल पर आसीन होकर धरती पर आती हैं। वे निरीक्षण करती है कि उनका कौन भक्त जागरण कर उनकी प्रतीक्षा कर रहा है, कौन उन्हें याद कर रहा है और कौन सो रहा है। यही कारण है कि शाब्दिक अर्थ में इसे को-जागृति यानी कोजागरा कहा गया है।
मिथिलांचल में कहा जाता है कि नव-विवाहितों को यह कोजागरा पर्व जरुर करना चाहिए, क्योंकि यह पर्व नव-विवाहितों के जीवन में खुशियां और वैभव लाता है। उनके दांपत्य जीवन में माधुर्य में अभिवृद्धि होती है।