ऐसा लगा कि रामविलास बाबू तो चले गए हैं लेकिन उनके स्वरूप पारस बाबू हैं.
हम लोगों को आशा है पारस बाबू शायद उनकी जो रिक्तियां है उसको वह पूरा कर सकेंगे." जीतन राम मांझी के इस बयान से एनडीए में खलबली बढ़ गई है.चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस के बीच विवाद पर जीतन राम मांझी ने बोला कि परिवार में तो खटपट होते रहता है. समाज के लिए अगर कुछ करना है, देश के बारे में सोचना है तो ऐसी परिस्थिति में मन में किसी प्रकार की थोड़ी भी अगर भावना हो तो जो नेता है, जो समाज सेवक है उसको आत्मसात करके आपस में मिलकर साथ करना चाहिए. ऐसा नहीं करने से दोनों व्यक्ति को घाटा होगा. सबसे ज्यादा घाटा समाज को होगा, इसलिए हम समाज के आदमी के नाते यह अवश्य कहना चाहेंगे कि पारिवारिक कलह घर तक ही रहे बाहर नहीं जाए.
इससे पहले मांझी ने बोला कि जगजीवन बाबू के बाद बिहार में दलितों के लिए आवाज उठाने वाले राम विलास पासवान ही रहे. सियासत में बिहार से वह दिल्ली तक पहुंचे. केंद्र में सियासत की. मुखर हो कर दलितों का प्रतिनिधित्व करते रहे. उनके जाने के बाद ऐसा लगता है कि प्रोग्राम में शून्यता आ गई है, लेकिन उनकी पुण्यतिथि पर हम उनको याद करते हैं.