रैयत का किसी भू-खंड पर शांतिपूर्वक दखल-कब्जा है तो खेसरा के चौहद्दीदारों का बयान भी महत्वपूर्ण साक्ष्य होगा.
साथ ही उस खेसरा के चौहद्दी में जमीन बिक्री, विनिमय या निबंधित बंटवारा में स्वत्वाधिकारी का नाम भी अहम साक्ष्य माना जाएगा. वह भी स्वामित्व निर्धारण का आधार होगा.यह भी बोला गया है कि अगर किसी भूमि पर रैयत का सिर्फ दखल-कब्जा है, दस्तावेज के साथ न तो जमाबंदी कायम है ना ही लगान रसीद कट रही है तो खाता बिहार सरकार के नाम से खोला जाएगा, लेकिन अवैध दखलकार का नाम अभ्युक्ति कॉलम में दर्ज किया जाएगा. आपसी सहमति पर आधारित सभी पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित बंटवारा के आधार पर सभी हिस्सेदारों का खाता अलग-अलग खुलेगा. अगर असहमति है तो संयुक्त खाता खुलेगा.अगर किसी व्यक्ति ने निबंधित जमीन खरीदी है, लेकिन दाखिल-खारिज नहीं कराया है तो यह अनिवार्य नहीं है. सर्वे कर्मी भी शांतिपूर्ण दखल कब्जा एवं केवाला की सत्यता के बारे में संतुष्ट होने पर क्रेता के नाम से खाता खोल सकते हैं.दीपक कुमार सिंह ने बताया कि इस तरह के स्वामित्व के 16 प्रश्नों पर एक अधिसूचना के माध्यम से सारी स्थिति को स्पष्ट किया गया है. अब कोई अस्पष्टता या विवाद होने की स्थिति में सर्वे कर्मियों को फैसला लेने में सुविधा होगी. बंदोबस्त कार्यालयों की तरफ से सर्वे निदेशालय से अक्सर इन सवालों को स्पष्ट करने का आग्रह किया जा रहा था.
बताया गया कि अगस्त (2024) से बिहार के सभी अंचलों में भूमि सर्वे का कार्य शुरू हो चुका है. फिलहाल टेरीज लिखने एवं स्वघोषणा जमा करने का कार्य चल रहा है. ऐसी हालत में इस अधिसूचना के आने से आम रैयतों को काफी ज्यादा सुविधा होगी एवं भ्रम एवं संशय की स्थिति खत्म हो जाएगी.