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प्रशांत किशोर ही नहीं चाहते थे कि उनका मेडिकल हो, BP तक भी जांच नहीं कराई, डॉक्टर का बड़ा बयान


संवाद 


बीपीएससी अभ्यर्थियों के समर्थन में आने के बाद आमरण अनशन पर बैठने वाले प्रशांत किशोर के मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है. बता दे कि गांधी मैदान से 6 जनवरी को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस स्वास्थ्य जांच के लिए फतुहा स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गई थी लेकिन उन्होंने खुद ही जांच कराने से मना कर दिया था. पीके ने बीपी तक की जांच नहीं कराई. इस पूरे मामले में एबीपी बिहार से बातचीत में बुधवार (08 जनवरी) को फतुहा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर पवन कुमार ने बड़ी खबर दी है. डॉक्टर पवन कुमार ने बोला कि प्रशांत किशोर को अस्पताल लाया गया था और करीब आधे घंटे से ज्यादा देर तक वे यहां रहे. उन्होंने किसी प्रकार की जांच से असहमति जताई थी. इतना तक कि बीपी की जांच भी नहीं हो पाई. पवन कुमार ने बोला, "हम लोगों ने उनकी बीपी जांच करने की कोशिश की तो वह मना कर गए. इसके लिए उन्होंने लिखित में भी दिया है कि मैं यहां जांच नहीं करवाना चाहता हूं." अभी प्रशांत किशोर पटना के मेदांता अस्पताल में भर्ती हैं. इस पर डॉक्टर पवन कुमार ने बोला कि अभी उनकी स्थिति कैसे बिगड़ गई है यह कहना मुश्किल है, लेकिन उस दिन जब वे आए थे तो ठीक स्थिति में दिख रहे थे. 

उन्होंने उस दिन इतना जरूर बोला था कि ठंड ज्यादा लग रही है. 

कारण क्या था वह जांच के बाद ही पता चलता, लेकिन उन्होंने जांच कराई नहीं. हम लोग जबरदस्ती चेकअप नहीं कर सकते हैं. इसकी रिपोर्ट हमने जिला प्रशासन को दी थी.बता दें कि गिरफ्तारी के बाद प्रशांत किशोर को पुलिस पहले एम्स लेकर गई थी. प्रशांत किशोर जब जमानत के बाद आए तो उन्होंने मीडिया से बोला था कि उन्हें एम्स के डॉक्टरों ने इसलिए भर्ती नहीं किया क्योंकि पुलिस के पास कागज नहीं था. पुलिस एम्स से निकालकर ले गई और पांच घंटे एंबुलेंस में घुमाती रही. कोई तैयार नहीं हुआ कि फर्जी तरीके से कागज बनाए. फतुहा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों को उन्होंने सलाम करते हुए यह बोला था कि पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्होंने (फतुहा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) फिटनेस सर्टिफिकेट जारी नहीं किया.
उधर पटना जिला प्रशासन की तरफ से भी इस मसले पर बयान जारी किया गया है. बोला गया है कि फतुहा स्वास्थ्य केंद्र पर प्रशांत किशोर की असहमति को रिकॉर्ड किया गया था. डॉक्टर पर फर्जी फिटनेस सर्टिफिकेट देने या गलत जांच प्रतिवेदन देने के लिए दबाव बनाने का सवाल ही नहीं है क्योंकि कोर्ट में पेशी के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं होती है. मात्र स्वास्थ्य जांच रिपोर्ट की आवश्यकता होती है जिसमें दोषी स्वस्थ भी हो सकता है अथवा अस्वस्थ भी हो सकता है. 

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