रोहित कुमार सोनू
होली का त्योहार सिर्फ रंगों और मस्ती का नहीं, बल्कि धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली की शुरुआत कहाँ से हुई थी? मिथिला हिन्दी न्यूज आपको इस रंग-बिरंगे त्योहार के इतिहास से रूबरू करा रहा है।
होली की शुरुआत कहाँ से हुई?
होली का प्रारंभिक उल्लेख भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत ब्रज (मथुरा-वृंदावन) से हुई थी, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार राधा और गोपियों संग रंग खेला था।
पौराणिक कथा: हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद और होलिका
होली का संबंध भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उसके दुष्ट पिता हिरण्यकश्यप से भी जोड़ा जाता है।
हिरण्यकश्यप चाहता था कि उसका बेटा प्रह्लाद उसकी पूजा करे, लेकिन प्रह्लाद विष्णु भक्त था।
हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे, क्योंकि उसे आग में न जलने का वरदान था।
लेकिन होलिका स्वयं जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया। इसी घटना की याद में "होलिका दहन" की परंपरा शुरू हुई।
ब्रज और बरसाना में होली की शुरुआत
भगवान श्रीकृष्ण के समय से ही मथुरा, वृंदावन, नंदगांव और बरसाना में होली खेली जाती है।
कृष्ण ने अपनी सखियों और राधा के साथ रंग खेलकर इस त्योहार को और खास बना दिया।
आज भी बरसाना की लठमार होली और वृंदावन की फूलों की होली पूरे देश में प्रसिद्ध है।
ऋग्वेद और पुराणों में होली का उल्लेख
ऋग्वेद, नारद पुराण और भविष्योत्तर पुराण में होली का जिक्र मिलता है।
इसे पहले "वसंतोत्सव" या "काममहोत्सव" के नाम से जाना जाता था।
मुगल काल में भी लोकप्रिय रही होली
इतिहासकारों के अनुसार, अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ के समय भी होली मनाई जाती थी।
राजा-महाराजाओं के महलों में होली के भव्य आयोजन होते थे।
होली की शुरुआत ब्रजभूमि से हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे यह पूरे देश और फिर दुनिया में फैल गई। आज यह सिर्फ हिंदुओं का नहीं, बल्कि पूरी मानवता का त्योहार बन चुका है। मिथिला हिन्दी न्यूज की टीम आपको होली की ढेरों शुभकामनाएँ देती है!